आज का हिन्दुस्तान, पहले के हिन्दुस्तान से काफी अलग है । ये बात राजनीती के संदर्भ उतनी ही सही है जितनी व्यापार, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक परिवर्तनों के बारे में; शायद आप मेरी इस बात से सहमत होंगे । सामाजिक चेतना के प्रतीक अन्ना हजारे हों या देश की बड़ी आबादी को खुली आँखों से सपने दिखाने वाले मोदी या फिर राजनीती को नए तरीके परिभाषित करने की हिमाकत करने वाले केजरीवाल .. ! इन सभी ने भारतीय राजनीती को पिछले तीन साल में बहुत अधिक प्रभावित किया है या यूँ कहें कि सारी राजनीती इन तीन शख्शियत के इर्द-गिर्द ही रही। पिछले तीन सालों में यदि कोई प्रासंगिक होके भी सबसे अधिक अप्रासंगिक हो चला था.. तो वो थी कांग्रेस पार्टी। अमूमन होता ये रहा है कि सत्ता आ जाने से ऊर्जा आती है, लेकिन इस बार कांग्रेस के साथ स्थिति दूसरी है, यहाँ सत्ता जाने से ऊर्जा का स्तर बड़ रहा है । राहुल गाँधी का ताजा व्यव्हार इस बात की ज़मानत है।
आज का हिंदुस्तान वही हिंदुस्तान है जिसे राजनीतिक वंशवाद विरासत में मिला, और नई पीड़ी इससे निजात पाना चाहती है। पर एक सच ये भी है की वंशवाद दिल्ली में हो या यूपी में आज भी खूब फल-फूल रहा है..! राहुल गाँधी के साथ अतिरिक्त समस्या ये है कि वो राजनैतिक वंशवाद के राष्ट्रीय प्रतीक बन गए है । यूपीए सरकार का भ्रष्टाचार और वर्तमान कांग्रेस की खस्ता हालत उनके लिए किसी चिनौती से कम नहीं है। लेकिन वे जिस तरह नेतृत्व, संगठन एवं जनसमर्थन से शक्ति सम्पन्न सरकार को संसद से लेकर सड़क तक कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, वो सुस्त पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। पिछला संसद सत्र इस बात का बेहतरीन उदाहरण है। पर राहुल गाँधी अभी भी इस देश के महत्वाकांक्षी समाज के नुमान्दे नहीं बन पाये है, और न हीं पिछड़े तबकों में खोया हुआ विश्वास लौटा पाये है । पर हर रोज़ जो मस्सकत वो कर रहे है, वो उनके विरोधियों को कहीं न कहीं असहज बना रही है, और यही उनके आगे बढ़ने और सफल होने का प्रमाण है।
निश्चित तौर पर, राहुल गाँधी से इस देश के आम जनमानस से कहीं ज्यादा उम्मीदें कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के नेताओं से लेकर आखिरी पंक्ति के कार्यकर्ताओं को है; और होनी भी चाहिए। पर प्रचंड बहुमत से किसी नेता को सत्ता के सिंहासन पर मजबूती बिठा देनी वाली जनता को भी उनसे उम्मीदें बड़ने लगीं है । ये उम्मीदें लोकतंत्र की वर्तमान परिस्थिति का तकाज़ा है। तकाज़ा मजबूत विपक्ष का । जो न सिर्फ संसद में बल्कि रोज़ होने वाली टीवी बहसों से लेकर सड़क तक सरकार के हर फैसले को कसौटी पर कसे और सत्ता के अहंकार को हर पल चिनौती दे।
निश्चित तौर पर आज देश, राहुल गांधी को मोदी की जगह देने के लिए तैयार नहीं है, मगर हाँ यदि आज राहुल गांधी जनता की जरूरतों को ठीक से समझ पाये और उनके मुताबित खुद को साबित कर पाये तो निश्चित ही वो कांग्रेस के अच्छे दिन लाने में सफल होंगें।
आज का हिंदुस्तान वही हिंदुस्तान है जिसे राजनीतिक वंशवाद विरासत में मिला, और नई पीड़ी इससे निजात पाना चाहती है। पर एक सच ये भी है की वंशवाद दिल्ली में हो या यूपी में आज भी खूब फल-फूल रहा है..! राहुल गाँधी के साथ अतिरिक्त समस्या ये है कि वो राजनैतिक वंशवाद के राष्ट्रीय प्रतीक बन गए है । यूपीए सरकार का भ्रष्टाचार और वर्तमान कांग्रेस की खस्ता हालत उनके लिए किसी चिनौती से कम नहीं है। लेकिन वे जिस तरह नेतृत्व, संगठन एवं जनसमर्थन से शक्ति सम्पन्न सरकार को संसद से लेकर सड़क तक कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, वो सुस्त पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। पिछला संसद सत्र इस बात का बेहतरीन उदाहरण है। पर राहुल गाँधी अभी भी इस देश के महत्वाकांक्षी समाज के नुमान्दे नहीं बन पाये है, और न हीं पिछड़े तबकों में खोया हुआ विश्वास लौटा पाये है । पर हर रोज़ जो मस्सकत वो कर रहे है, वो उनके विरोधियों को कहीं न कहीं असहज बना रही है, और यही उनके आगे बढ़ने और सफल होने का प्रमाण है।
निश्चित तौर पर, राहुल गाँधी से इस देश के आम जनमानस से कहीं ज्यादा उम्मीदें कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के नेताओं से लेकर आखिरी पंक्ति के कार्यकर्ताओं को है; और होनी भी चाहिए। पर प्रचंड बहुमत से किसी नेता को सत्ता के सिंहासन पर मजबूती बिठा देनी वाली जनता को भी उनसे उम्मीदें बड़ने लगीं है । ये उम्मीदें लोकतंत्र की वर्तमान परिस्थिति का तकाज़ा है। तकाज़ा मजबूत विपक्ष का । जो न सिर्फ संसद में बल्कि रोज़ होने वाली टीवी बहसों से लेकर सड़क तक सरकार के हर फैसले को कसौटी पर कसे और सत्ता के अहंकार को हर पल चिनौती दे।
निश्चित तौर पर आज देश, राहुल गांधी को मोदी की जगह देने के लिए तैयार नहीं है, मगर हाँ यदि आज राहुल गांधी जनता की जरूरतों को ठीक से समझ पाये और उनके मुताबित खुद को साबित कर पाये तो निश्चित ही वो कांग्रेस के अच्छे दिन लाने में सफल होंगें।
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