Tuesday, October 30, 2012

नाकाम कोशिश

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार का चेहरा बदलने की नाकाम कोशिश किसी भी तरह से संपन्न हुई; इसके लिए सोनिया जी व उनकी टीम को बधाई देता हूँ | पर कभी-२ सोचता हूँ कि दुनिया के सबसे बड़े लोक्तान्तान्त्रिक देश की सबसे बड़ी पार्टी या  उसके  मुखिया के बारे में बोलने की क्या वाकई अपनी हैसियत है ?..
शायद नहीं.. पर भारत का संविधान इसकी इजाजत देता है; मुझको ही नहीं,  आप सब को..|  पर सौ टके की बात ये है, जिस इन्सान को अपनी जीविका चलाने के लिए, सारा वक्त व उर्जा न्योछावर करनी पड़ती हो, वो भला इन बातों में क्यूँ उलझे..?
पर ..जब विकलांगो की बैशाखियों को लूट-लूट  कर देश के रहनुमा, अपने घर की दीवारें और ऊँची करने की कारगुजारियों को अंजाम दे रहें हो,  तब हम जैसे लोगों का बोलना (जिसे नेताओ की भाषा में वाचाल हो जाना कहते है)  लाजमी  सा दिखता है| मन तब और झंकृत हो जाता है, जब इन्हें इनके  घिनोने  कारनामों की एवज में देश के ऐसे बड़े पदों पर बिठाया जाये, जहाँ से समूची दुनिया हमारा चाल, चरित्र और चेहरा पढती हो.. |
इन सब घटनाओ से बस दो ही बातें समझ आती है..|
पहली ये कि, या तो इनसे बेहतर इस काम को अंजाम देने वाले को, भारत माता जन्म नहीं दे पाई..|
पर अन्दर से बार-बार यही आवाज आती है, कि वीरो को जनने वाली ये भूमि बाँझ नहीं हो सकती..|
तो फिर भारतीय लोकतंत्र कि वर्तमान स्थिति को बेहतर समझने के लिए,एक ही सरल  रास्ता बचता है ..
वो है भारतीय राजनीती के इस काले समय में, भारतीय लोकतंत्र की परिभाषा..
"भ्रष्टो  का , भ्रष्टो  के लिए और  भ्रष्टो  द्वारा "    !!!

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